बांदा क्या है और कहाँ पाया जाता है?
तंत्र विद्या में विभिन्न पेड़ों पर उत्पन्न होने वाले बांदा का प्रयोग अनेक चमत्कारी टोटको में किया जाता है। इस संबंध में बहुत भ्रम फैला हुआ है और अनेक साधकों ने समय-समय पर जिज्ञासा की है कि यह बांदा क्या है कई अधकचरे पाखंडी तांत्रिक को ने इसे किसी पेड़ के ऊपर उनके अन्य प्रकृति के पेड़ बता दिया है जिससे बहुत भ्रम उत्पन हो गया है। जैसे पीपल के पेड़ पर उत्पन्न नीम का वृक्ष में कुछ चमत्कारिक गुण उत्पन्न होते हैं पर यह बांदा नहीं है।
बांदा को बिहार प्रदेश में बांझी, बाँझ, बांझा इत्यादि कहते हैं किसी पेड़ की विकसित होती डालियों में से एक दो में ऊपरी सिरे में एक गोल घाट सी पड़ जाती है और उससे आगे पतली डालियों के रूप में 2 इंच डेढ़ इंच के पत्तों से भरी एक डाली विकसित होती है और बड़ी होती है इसे पेड़ की डाली में स्पष्ट देखा जा सकता है आगे जो पत्ते हैं वह लाइट ग्रीन होते हैं इनमें कभी-कभी पीले रंग की छाया भी होती है इन पत्तों में होती है और यह पेड़ के पत्ते से बिल्कुल अलग होते हैं इनमें एक से डेढ़ इंच लंबे लौंग की आकृति के फूल लगते हैं जो घुटनों में होते हैं और पीले में लाल रंग मिश्रित होता है। इसमें फल लगते हैं छोटे बेरियों में होते हैं और इसमें एक-एक बीज होता है बांदा चाहे जिस पेड़ पर हो उसके पत्ते आकृति फूल एक ही प्रकार के होते हैं इससे स्पष्ट होता है कि यह कोई परजीवी पौधा है जो डालियों के विकासशील सिरे पर उत्पन्न होता है और पेड़ की ओरिजिनल डाली के विकास को समाप्त करके अपना अस्तित्व विकसित करने लगता है।
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